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बुधवार, 31 अक्टूबर 2007
झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा कर "राजभवन मार्च"
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गुरुवार, 25 अक्टूबर 2007
31 अक्तूबर के रजधानी में लाठी कर जबाब नगड़ा से
राजभाषा कर मुद्दा में आब तक जे एकतरफा खेइल चलत रहे आउर जे दिकू मदारी मन तमाशा करत रहें उ मनक दिल के ठंडा करेक ले झारखंडी मन पइका नाचबैं। इ नाच ३१ अक्तूबर के रांची कर मेन संडक से सुरु होवी आउर लाट साहेब कर घर-दुरा ठिन फ़ाइनली जाएके खतम होवी। गोटा झारखण्ड से सउब इकर में शामिल होबैं आउर नवो झारखंडी भाषा के द्वितीय राजभाषा बनाएक ले सरकार उपर दबाब बनाबएं।
बुधवार, 24 अक्टूबर 2007
सभी पीछे पड़े हैं
एक बार फिर झारखण्ड में भोजपुरिया, मैथिल, बंगाली और उड़िया लोग द्वितीय राजभाषा की दावेदारी से झारखंडी भाषाओं को हटाने के लिए रांची की सड़कों पर लाठियाँ भांज रहे हैं। भोजपुरी लोग अपने ही गृह राज्यों यूपी आउर बिहार में भोजपुरी को राजभाषा का दर्जा नहीं दिला पाए हैं, तो मैथिल, बंगाली और उड़िया लोगों का अपने स्टेट भर से पेट नहीं भरा है। झारखण्ड की नौ आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं का हक मारने के लिए भूखों की तरह चिल्ला रहे हैं। वाह रे मुख्यधारा और सभ्य समाज!
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